
मौलाना रहमतअली एक ऐसा नाम था - जिसकी क्या छोटे और क्या बड़े, क्या गरीब और क्या अमीर, क्या पढ़े-लिखे और क्या अनपढ़, सभी एक स्वर से प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। हर तरह के लोगों का प्यार और आदर पाने का कारण मौलाना साहब की अद्भुत प्रकृति थी। वे चार भाषाओं के विद्वान थे, फिर भी सरल-हृदय इतने कि बच्चों को भी भा जाते। इसके साथ ही, वे सबके सुख-दुख में हर समय साथ देने वाले, विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे।
मौलाना साहब को लोग 'चलता-फिरता अस्पताल' भी कहते थे। इसका कारण यह था कि वे आयुर्वेदिक और होम्योपैथी के विद्वान थे और अपने मजबूत शरीर और ज्ञान का उपयोग दूसरों की भलाई में करते थे। किसी घर में जब भी पति-पत्नी में झगड़ा होता, मौलाना साहब को उस घटना का पता चल जाता। वे गुस्सैल और झगड़ालू पति-पत्नी को भी समझा-बुझाकर उनके झगड़े को प्यार में बदलने में सफल रहते।
मौलाना साहब को लड़ाई-झगड़ा बिल्कुल पसंद न था। जहां भी ऐसा होता, वे बिना बुलाए पहुंच जाते और तर्कों से झगड़े को शांत कर देते। इतिहास के उदाहरण देकर, लड़ने-झगड़ने वालों की ऐसी बखिया उधेड़ते कि कठोर से कठोर व्यक्ति भी मोम बन जाता।
एक बार उनके मोहल्ले के मियां छक्कन का झगड़ा उनके पड़ोसी ईदगिर्दियों से हो गया। दोनों पक्ष अपनी-अपनी चौधराहट की लड़ाई लड़ रहे थे और किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थे। पहले तू-तू, मैं-मैं हुई, फिर बात बढ़कर मारपीट तक पहुंच गई।
किसी ने दौड़कर मौलाना साहब को खबर दी। मौलाना साहब तुरंत अपने सभी जरूरी काम छोड़कर घटना-स्थल पर पहुंचे। वहां देखा कि दोनों पक्ष गुत्थम-गुत्था और लहूलुहान हो रहे थे।
मौलाना साहब को देखकर मियां छक्कन बोले, "अमां मौलाना साहब, आप हमारे इस फसाद में दखल देने की कोशिश मत कीजिए। मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं, मगर आज यह ईदगिर्दी नहीं बचेगा।"
ईदगिर्दी भी तैश में बोले, "हाँ, मौलाना साहब, अगर आपने दखल देने की कोशिश की तो आपकी बात गिर जाएगी। मैं इस पाजी को जहन्नुम रसीद किए बिना चैन से नहीं बैठ सकता।"
मौलाना साहब ने शांत स्वर में कहा, "भाई, झगड़ा किस बात का है?"
दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए, लेकिन मौलाना साहब ने धैर्यपूर्वक उनकी बातें सुनीं। फिर उन्होंने उन्हें इतिहास के उदाहरणों और धार्मिक शिक्षाओं के माध्यम से समझाया। उन्होंने कहा, "अगर हम दूसरों को माफ कर दें, तो यह हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी। झगड़े में जीतने से बेहतर है, दिल जीतना।"
धीरे-धीरे दोनों पक्ष शांत हो गए। मौलाना साहब ने उन्हें एक-दूसरे से माफी मांगने और गले मिलने को कहा। उनकी सादगी और तर्कशीलता ने फिर से एक बार यह साबित कर दिया कि वे सचमुच 'विलक्षण व्यक्ति' थे।
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